एक मुद्दत से आरज़ू थी फुरसत मिले कभी ...
मिली, तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो ..!!
ये मोहब्बत का गणित है यारों
यहाँ दो में से एक गया तो कुछ नहीं बचता ,
तरक्की के इस दौर में हम इतना आगे निकल चुके हैं
कि हाथ में पकड़े हुए मोबाइल की अहमियत
पास बैठे इंसान से ज्यादा हो चुकी है
बेवफ़ाओं की महफ़िल लगेगी ,
आज ज़रा वक़्त पर आना ” मेहमान-ए-ख़ास ”” हो तुम…