रोज़ तारों की नुमाइश में ख़लल पड़ता है , चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है , उनकी याद आई है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो , धडकनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है |

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