क्या लिखूँ अपनी जिंदगी के बारे में दोस्तो,वो लोग ही बिछड़ गए जो जिंदगी हुआ करते थे
खुद ही रोये और खुद ही चुप हो गए,ये सोचकर की कोई अपना होता तो रोने ना देता
हैरत में पड गया हूँ मरकर मैं दोस्तों,ठोकरे मारने वाले आज कांधा दे रहे है
ये किस खेल का खिलाडी बना दिया है मुझे मुकद्दर ने,हर कोई खेल जाता है हारा हुआ देख कर
जिसकी चोट पर हमने सदा मरहम लगाए,हमारे वास्ते फिर उसने नए खंज़र मंगाए
जिनके दिल बहोत अच्छे होते है,अकसर किस्मत उनकी ही खराब होती है
मुझे घमंड था की मेरे चाहने वाले बहुत है इस दुनिया में,बाद में पता चला की सब चाहते है अपनी ज़रूरत के लिए
सवाल जहर का नहीं था वो तो मैं पी गया,तकलीफ लोगों को तब हुई जब मैं जी गया
उठाना खुद ही पड़ता है थका टूटा बदन अपना,जब तक साँसें चलती है कंधा कोई नहीं देता
अक्सर लोग कहते है की खुशिया बांटने से बढती है,पर कोई ये नहीं बताता की वो मिलती कहाँ पर है
जब भी मौका मिलता है आईने से ही माफ़ी मांग लेता हूँ,मैंने सबसे ज्यादा दिल तो मेरा ही दुखाया है
क्या लूटेगा जमाना खुशियो को हमारी,हम तो खुद अपनी खुशिया दुसरो पर लुटाकर जीते है
दर्द की फितरत ही कुछ ऐसी है साहेब,जताओ तो कम लगता है और छुपाओ तो ज्यादा
टूटा तारा देखकर मांगते है कुछ न कुछ लोग,पर अगर वो दे सकता तो खुद क्यूँ तूट जाता
किसकी पनाह में तुझको गुज़ारे ऐ जिंदगी,अब तो रास्तों ने भी कह दिया है की घर क्यों नहीं जाते
जब ख्वाब टूटते है तो आँखों से लहू बहता है,जो दीखता नहीं बस दिल महसूस करता है !!
चंद खुशियाँ ही बची थी मेरे हाथो की लकीरो में,वो भी तेरे आंसु पोछते हुए मिट गई !
होता है अगर तो होने दो मेरे क़त्ल का सौदा,मालूम तो हो की बाज़ार में क्या किंमत है मेरी !!
लोगो ने कुछ दिया तो सुनाया भी बहुत कुछ,ऐ खुदा एक तेरा ही दर है जहा कभी ताना नहीं मिला
मुझे खामोश देखकर इतना हैरान क्यूँ होते हो ऐ दोस्तो,कुछ नहीं हुआ है बस भरोसा करके धोखा खाया है !!
हर सजा कुबूल की हमने,कसूर सिर्फ इतना था की हम बेकसूर थे
भूख से मुरझाये चेहरे घर में कब तक देखता,फाड़कर डिग्री मुझे मजदूर हो जाना पड़ा
बरबाद लोग तो तुमने भी देखे होंगे,लेकिन मैं एक मिसाल बनना चाहता हूँ
मुझे घमंड था की मेरे चाहने वाले बहुत है इस दुनिया में,
लेकिन बाद में पता चला की सब चाहते है अपनी जरूरत के लिए
उन्होंने ही रुलाया है मुझको हर बार,
जो कहते थे की तेरे चेहरे की उदासी गँवारा नहीं हमें
बडे़ ही अजिब कायदे है मेरे मुल्क में,
भुख से ज्यादा बहस धर्म के नाम पर होती है
कभी तो खोदकर देखो तुम अपने जिस्म की कब्रें,
मिलेंगी ख्वाहिशें जिनको तुम अन्दर मार देते हो
बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए,
क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए
जिन्दगी की थकान में गुम हो गया दोस्तो,
वो लफ्ज जिसे सुकून कहते है
मुझे पत्थर बनाने में उसका बड़ा हाथ है,
जिसे मैं कभी फ़ूल दिया करता था
हालात मेरे मुझसे ना मालूम कीजिये,
मुद्दत हुई मुझसे मेरा ही कोई वास्ता नहीं
मेरी पलकों का अब नींद से कोई ताल्लुक नहीं रहा,
मेरा कौन है ये सोचने में रात गुज़र जाती है
मुझे तो आदत है दर्द सहने की,
तुम बताओ की थक नहीं जाते दर्द दे-देकर
पलकों से पानी गिरा है तो उसे गिरने दो,
सीने में कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी
मेरी ज़िन्दगी ने आज ये कहकर बड़ी तसल्ली दी मुझे,
कुछ लोग तेरे काबिल नहीं थे उन्हे अब तुझसे दूर कर दिया है
ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है जिन्दगी आजकल मुकद्दर
मोहब्बत और दोस्त तीनो नाराज रहते है
ना जाने कैसी नज़र लगी है ज़माने की,
बजह ही नहीं मिल रही है मुस्कुराने की
ज़िन्दगी में बहुत कम मिली है,
हर वो चीज़ जिसे शिद्दत से चाहा है मैंने
दोनों ही हाल में मिलना चाहते है लोग हमसे,
कोइ बनाने की चाह रखता है तो कोइ मिटाने की
तुम्हे क्या पता की किस दर्द में हूँ मैं,
जो कभी लिया ही नहीं उस कर्ज में हूँ मैं
मेरा असली दर्द तो सिर्फ मेरा खुदा जानता है,
तुमने तो सिर्फ मेरी नकली मुस्कान देखी है
इन हसरतों को इतना भी क़ैद में न रख ए ज़िंदगी,
ये दिल भी थक चुका है इनकी ज़मानत कराते कराते
अब ना करूँगा अपने दर्द को बया किसी के सामने,
दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यूँ करना
अब तो सजाएं बन चुकी है गुजरे हुए वक्त की यादें,
ना जानें क्यों मतलब के लिए मेहरबान होते है लोग
वो एक परिंदा जो सब पर बोझ था,
एक शाम जब लौटा नहीं तो शाखों को उसी का इंतजार रहा
लोग इंतजार करते रहे की हमें टूटा हुआ देखें,
और हम थे की सहते-सहते पत्थर के हो गए
लब ये कहते है की चलो अब मुस्कुराया जाये,
सोचती है आँखे की दिल से दगा कैसे किया जाये
अजीब पहेलियां है हाथो की लकीरों में,
सफर लिखा है मगर हमसफर नहीं लिखा
थोड़ी सी तो मेहरबान हो जा मुझ पर ऐ खुशी,
थक गया हूँ हँसी के आड़ में गम छुपाते छुपाते
जब हम डूबे तो समंदर को भी हैरत हुई,
की अजीब शख्स है जो किसीको पुकारता ही नहीं