ज़ख्म सब भर गए बस एक चुभन बाकी है, हाथ में तेरे भी पत्थर था हजारों की तरह, पास रहकर भी कभी एक नहीं हो सकते, कितने मजबूर हैं दरिया के किनारों की तरह।

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