उठती नहीं है आँख किसी और की तरफ,पाबन्द कर गयी है किसी की नजर मुझे,ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ,काफ़िर बना गई तेरी काफ़िर-नज़र मुझे।

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